परिक्रमा मार्ग स्थित सुदामा कुटी नाभापीठ में आयोजित दस दिवसीय रामानंदाचार्य जयंती महोत्सव

पंचम दिवस आयोजित विद्वत संगोष्ठी में विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए।अध्यक्षता करते हुए मंहत सुतीक्ष्ण दास ने कहा कि स्वामी रामानंदाचार्य ने संस्कृत भाषा में ‘वैष्णव मताब्ज भास्कर व ‘रामार्चन पद्धति नामक ग्रंथों की रचना की। पहले ग्रंथ में उन्होंने अपने शिष्य सुरसुरानंद द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए हैं और दूसरे ग्रंथ में भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना की परंपरागत विधि बताई है। स्वामी जी ने हिंदी भाषा में लिखे गए अपने ग्रंथ ‘ज्ञान तिलक में ज्ञान की चर्चा की है और ‘राम रक्षा में योग व निर्गुण भक्ति का वर्णन किया है। विहारी दास भक्तमाली ने कहा किस्वामी रामानंदाचार्य महाराज ने भारतीय वैष्णव भक्ति धारा को पुनर्गठित किया। उन्होंने भक्ति के जिस विशिष्टाद्वैत सिद्धांत का प्रवर्तन किया, उसके बारे में कहा जाता है कि उसकी प्रेरणास्रोत मां जानकी हैं। कथा व्यास अनिरुद्धाचार्य ने कहा कि स्वामी रामानंदाचार्य महाराज ने विभिन्न मत-मतांतरों एवं पंथ-संप्रदायों में फैली वैमनस्यता को दूर करने के लिए समस्त हिंदू समाज को एक सूत्र में पिरोया।भानु प्रपन्नाचार्य ने कहा कि स्वामी रामानंदाचार्य ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को अपना आदर्श मानकर सरल राम भक्ति के मार्ग को प्रशस्त किया। इस अवसर पर महंत अमरदास , गोपेश दास, अवनीश बाबा प्रेमनारायण, प्रेमदास,पूर्ण प्रकाश कौशिक ,किशोर दास, मोहन कुमार शर्मा, गोपाल शरण शर्मा सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहेमंच संचालन राम संजीवन दास शास्त्री ने किया।

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