
, बरसाना के प्रमुख श्रीजी मंदिर में बड़े ही धूम-धाम से लड्डू होली खेली गई/बरसाना की लट्ठमार होली से ठीक एक दिन पहले खेली जाने वाली इस लड्डू होली का बृज में विशेष महत्त्व है/ इस दिन नंदगाँव के हुरियारों को न्यौता देकर पांडा बरसाना लौटता है,जिसका सभी लड्डू फेंक कर स्वागत करते है/बृज में लट्ठमार होली की परम्परा बेहद प्राचीन है और बरसाना को इसका केंद्र माना जाता है/बरसाने की लट्ठमार होली के विश्वप्रसिद्ध होने की वजह है इसका परंपरागत स्वरुप/ बरसाने की हुरियारिनो से होली खेलने के लिये नंदगाँव के हुरियारे आते है और इसके लिये बाकायदा एक दूत न्यौता देने नंदगाँव पहुंचता है जो आज के दिन लौट कर बरसाना आता है/इस दूत को यहाँ पांडा कहा जाता है और जब ये पांडा लौट कर बरसाने के प्रमुख श्रीजी मंदिर में पहुंचता है तो यहाँ मंदिर में सभी गोस्वामी इकठ्ठा होकर उसका स्वागत करते है और बधाई स्वरुप पांडा पर लड्डू फेंकते है उसे गुलाल के साथ तोहफा से लाद दिया जाता है /उसके बाद मंदिर प्रांगण में मौजूद भक्त भी पांडा के ऊपर लड्डू फेंकते है जिसे हम सभी लड्डू होली के नाम से जानते है/ इस होली में शामिल होने के लिये देश के कोने-कोने से भक्त बरसाना पहुँचते है और लड्डू होली का आनंद उठाते है / बरसाना के लाडली मंदिर में खेली गयी लड्डू होली इसे देखने की लिए लाखो श्रद्धालु उमड़ पड़े जिसमे श्रद्धालु पर पहले से राधारानी मंदिर के सेवायत द्वारा लड्डू फेक कर होली की सुरुआत की जाती है उसके बाद श्रद्धालु अपने साथ लाये लड़डूओ को एक दूसरे पर मार कर होली का आनंद लेते हे और नाचते गाते और गुलाल उड़ाते है और पूरी तरह होली के रंग में रंग जाते है और भगवान के साथ होली खेल कर मस्त हो जाते है . इस होली में शामिल होने वाले भक्तों के उत्साह की एक खास वजह यह है कि जो लड्डू खाने के लिये होता है इस दिन उन्हें इससे होली खेलने का मौका मिलता है उसे अपने साथ राधा रानी के प्रसाद के रूप के अपने घरों को भी लेकर जाते है और साथ ही अगले दिन होने वाली लट्ठमार होली को खेलने के लिये तो इनका उत्साह देखते ही बनता है /